लय और ताल में कैसे गायें, लय क्या है, लय के कितने प्रकार हैं, Lay Matra And Taal Indian Classical Music, मात्रा, विभाग,सम,ताली और खाली कैसे समझें इन सभी प्रश्नों के जवाब हम इस पोस्ट में जानेंगे | लय और ताल में कैसे गायें, Lay Matra And Taal Indian Classical Music.
Lay Matra And Taal Indian Classical Music
लय और ताल में कैसे गायें | Lay Matra And Taal Indian Classical Music
Lay Matra And Taal Indian Classical Music में इन सभी की मुख्य भूमिका होती है Lay Matra And Taal के बिना Indian Classical Music की कल्पना भी नहीं की जा सकती है |लय और ताल में कैसे गायें?
Lay kya hai? कितने प्रकार का होता है –
लय और लय के कितने प्रकार हैं, मात्रा, विभाग,सम,ताली और खाली कैसे समझें | संगीत में एक समान गति को लय कहते हैं |
लय के तीन प्रकार होते हैं – विलंबित लय, मध्य लय, और द्रुत लय | लय को समझने के लिए सबसे बेहतरीन उदाहरण हमें हमारे रोजमर्रा के कार्य से ही मिल जाते हैं | जैसे – चलने – फिरने, दौड़ने या फिर बोलने में, कुछ कार्य हम जल्दी – जल्दी करते हैं और कुछ आराम से ये एक सामान अवस्था में होते हैं इनके बीच में हम कुछ देर रुकते भी हैं ऐसे ही संगीत में भी होता है | इसमें भी एक सामान गति रहती है |
Lay ke prakar –
सामन्यतया लय तीन प्रकार के होते हैं – विलंबित लय, मध्य लय, और द्रुत लय | गायन, वादन और नृत्य से मिलकर संगीत का निर्माण होता है और इन सभी को लय की आवश्यकता होती है बिना लय के गायन, वादन या नृत्य नहीं हो सकता है | संगीत के इन तीनो विधाओ में कोई न कोई लय अवश्य होती है | ( लय और ताल में कैसे गायें, Lay Matra And Taal Indian Classical Music )
१. Vilambit Lay – जब गायन, वादन या नृत्य में लय धीमी रहती है तो उसे विलम्बित लय कहते हैं |
२. Madhy Lay – जब गायन, वादन या नृत्य में लय सामान्य रहती है तो उसे मध्य लय कहते हैं |
३. Drut Lay – जब गायन, वादन या नृत्य में लय तेज रहती है तो उसे द्रुत लय कहते हैं |
सामान्यतया Madhy Lay एक सेकेण्ड के बराबर, Vilambit Lay इसकी आधी और Drut Lay इसकी दोगुनी मानी जाती है | कोई भी गायक अपनी आवश्यकता अनुसार इनकी गति को कम या ज्यादा कर सकता है |
Matra And Taal –
Indian Classical Music में Lay Matra And Taal का भी महत्वपूर्ण स्थान है | मात्रा संगीत में समय को मापने की इकाई है ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार से की द्रव के लिए ली. और ठोस के लिए किग्रा, मीटर आदि हैं | दो तालियों के बीच का समय मात्रा कहलाता है मात्रा की संख्या, लम्बाई और छोटाई के अनुसार लय के प्रकार बनाये गए हैं | ( लय और ताल में कैसे गायें, Lay Matra And Taal Indian Classical Music )
जब दो तालियों के बीच का समय ज्यादा होगा तब विलंबित लय होगा, जब दो तालियों के बीच का समय सामान्य होगा तब मध्य लय होगी और जब दो तालियों के बीच का समय सामान्य से आधा हो जायेगा तब द्रुत लय होगी | जब मध्य लय में एक मात्रा होगा तो द्रुत लय में यही मात्रा दुगुना होगा और विलंबित लय में आधा होगा | मात्राओ के विभिन्न समूह को ताल कहते हैं |( लय और ताल में कैसे गायें, Lay Matra And Taal Indian Classical Music)
हिन्दुस्तानी संगीत (भारतीय शास्त्रीय संगीत ) में ताल अनेको हैं जैसे – तीन ताल, एक ताल, कहरवा ताल, झपताल, दादरा ताल, ध्रुपद ताल, दीपचंदी ताल, रूपक ताल, तिल्वाडा, चार ताल आदि | ताल देने के लिए तबले और पखावज का प्रयोग किया जाता है | इन तालों में कुछ निश्चित बोल होते हैं | जैसे – ता. तू, न, धी, किट आदि |(लय और ताल में कैसे गायें, Lay Matra And Taal Indian Classical Music )
“तालबद्ध रचना को कुछ विभागों में विभाजित किया गया है |”
विभाग – प्रत्येक ताल के विभागों की संख्यानिश्चित होती है क्योंकि ताल के बोलो के जितने खंड होते हैं उतने ही विभाग होते हैं | जैसे तीन ताल 16 मात्रा का होता है और इसके चार – चार मात्राओ के विभाग हैं तो कुल 16 मात्रा और चार विभाग हुए |
यहाँ पर कुछ तालों को उदहारण के लिए दिया जा रहा है –
1. Teen Taal –
मात्रा – 16, विभाग – 4, प्रत्येक विभाग 4 – 4 मात्राओं का |
ताली – 1,5 और 13 पर तथा खाली 6 पर
धा धिं धिं धा | धा धिं धिं धा | धा तिं तिं ता | ता धिं धिं धा
x 2 0 3
अथवा
ना धिं धिं ना | ना धिं धिं ना | ना तिं तिं ना | ना धिं धिं ना
x 2 0 3
2. Dadra Taal –
मात्रा – 6, एक विभाग |
धा धि ना | धा तू ना |
x 0
3. Rupak Taal –
मात्रा – 7, विभाग – 3, पहला विभाग 3 मात्राओं का और बाकी के 2 विभाग 2 – 2 मात्राओं का –
ता ती ना | धि ना | धि ना |
x 2 3
4. Kahrwa Taal –
मात्रा – 8, विभाग – 2, प्रत्येक विभाग 4 – 4 मात्राओं का |
ताली 1 पर और खाली 5 पर –
धा गे ना ते | न क धिं – |
x 0
Lay Matra And Taal Indian Classical Music
Sam Taali aur Khali Kya Hai?
Sam Taali Aur Khali का उत्तर भारतीय संगीत की विशेषता है | Sam Taali Aur Khali सदैव विभाग के प्रथम मात्रा पर ही होती है | ताल को दिखने के लिए हम तबला, पखावज, ढोलक या फिर हाथो के विशेष इशारे से दिखा सकते हैं | प्रथम मात्रा पर पड़ने वाली ताली को सम कहते है | गायन, वादन और नृत्य में सम पर जोर पड़ता है और जहा पर वाद्य यंत्रों पर अघात करके ध्वनि उत्पन्न करते हैं उसे ताली कहते हैं और जहाँ ध्वनि न करके हाथ हिला देते हैं उसे खाली कहते हैं |
हिन्दुस्तानी संगीत (भारतीय शास्त्रीय संगीत ) में ताल अनेको हैं जैसे – Teen Taal, Ek Taal, Kahrwa Taal, Jhaptaal, Dadra Taal, Dhrupad taal, Deepchandi taal, Rupak Taal, Tilwada Taal Aur Char Taal आदि | ताल देने के लिए तबले और पखावज का प्रयोग किया जाता है | इन तालों में कुछ निश्चित बोल होते हैं | जैसे – ता. तू, न, धी, किट आदि |
Very informative post
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